
विसयविरत्तो मुच्चदि विसयासत्तो ण मुच्चदे जोई ।
बहिरंतरपरमप्पाभेदं जाणाहि किं बहुणा ॥125॥
विषयविरक्त: मुच्यते विषयासक्त: न मुच्यते योगी ।
बहिरन्त:परमात्मभेदं जानीहि किं बहुना?
अन्वयार्थ : विषयों से विरक्त योगी मुक्त होता है और विषयों में आसक्त मुक्त नहींहोता । बहिरात्मा, अन्तरात्मा व परमात्मा के भेदों को जानो , और अधिक कहने से क्या लाभ? ॥125॥