जेसिं अमेज्झमज्झे उप्पण्णाणं हवेदि तत्थ रुई ।
तह बहिरप्पाणं बहिरिंदिय-विसएसु होदि मदी ॥131॥
येषाम् अमेध्यमध्ये उत्पन्नानां भवति तत्र रुचि: ।
तथा बहिरात्मनां बहिरिन्द्रियविषयेषु भवति मति: ॥
अन्वयार्थ : जिस प्रकार अमेध्य (अपवित्र विठा आदि) में उत्पन्न होने वाले(कीड़े) की उसी (विठा) में रुचि होती है, उसी प्रकार बहिरात्मा की बुद्धि बाह्य इन्द्रियविषयों में (ही) होती है ॥131॥