पूयसूयरसाणाणं खारामियभक्खभक्खणाणं पि ।
मणुजाइ जहा मज्झे बहिरप्पाणं तहा णेयं ॥132॥
पूय-सूपरसाज्ञानं क्षारामृतभक्ष्याभक्ष्याज्ञानमपि ।
मनुजाति: यथा मध्ये बहिरात्मा तथा ज्ञेय: ॥
अन्वयार्थ : जिस प्रकार, मनुष्य जाति अखाद्य व स्वादयोग्य पदार्थों का (भेदज्ञान रूपी) विवेकतथा क्षार व अमृत एवं भक्ष्य व अभक्ष्य का ज्ञान (विवेक) नहीं रखती, उसी प्रकार बहिरात्माको उन (बाह्य इन्द्रिय-विषयों) के मध्य विवेक नहीं होता । यह जानना चाहिए ॥132॥