
मिस्सो त्ति बाहिरप्पा तरतमया तुरिय अंतरप्प जहण्णो ।
सत्तोत्ति मज्झिमंतर खीणुत्तम परम जिणसिद्धा ॥141॥
मिश्र इति बहिरात्मा तरतमव्या तुर्ये अन्तरात्मा जघन्य: ।
सप्त इति मध्यमान्तर: क्षीणे उत्तम:, परमा जिनसिद्धा: ॥
अन्वयार्थ : मिश्र तक 'बहिरात्मा' होते हैं, चौथे में'जघन्य अन्तरात्मा' होते हैं, सात तकतरतमता के साथ 'मध्यम अन्तरात्मा' होते हैं, और क्षीण में उत्तम अन्तरात्मा,एवं उससे आगे गुणस्थानों में जिनेन्द्र व सिद्ध परम यानी 'परमात्मा' होते हैं ॥141॥