मूढत्तय-सल्लत्तय-दोसत्तय-दंड-गारवत्तयेहिं ।
परिमुक्को जोई सो, सिवगदिपहणायगो होदि ॥142॥
मूढत्रय-शल्यत्रय-दोषत्रय-दण्ड-गारवत्रयै: ।
परिमुक्तो योगी स: शिवगतिपथनायको भवति ॥
अन्वयार्थ : जो योगी तीन मूढ़ताओं, तीन शल्यों, तीन दोषों, तीन दण्डों एवं तीनगारवों से मुक्त रहता है, वह शिवगति (मोक्ष) के पथ का नायक होता है ॥142॥