रयणत्तय-करणत्तय-जोगत्तय-गुत्तिव्य-विसुद्धेहिं ।
संजुत्तो जोई सो सिवगदिपहणायगो होदि ॥143॥
रत्नत्रयकरणत्रय-योगत्रय-गुप्तित्रय-विशुद्धिभि: ।
संयुक्तो योगी स: शिवगतिपथनायको भवति ॥
अन्वयार्थ : जो योगी रत्नत्रय, तीन करण, तीन योग, तीन गुप्ति, इनकी विशुद्धि से युक्त होताहै, वह शिवगति (मोक्ष) के मार्ग का नायक होता है ॥143॥