जिणलिंगहरो जोई विरायसम्मत्तसंजुदो णाणी ।
परमोवेक्खाइरियो सिवगदिपहणायगो होदि ॥144॥
जिनलिङ्गधरो योगी विरागसम्यक्त्वसंयुतो ज्ञानी ।
परमोपेक्षा-ईरित: शिवगतिपथनायको भवति ॥
अन्वयार्थ : जो योगी जिन-मुद्रा का धारक है, वैराग्य व सम्यक्त्व से सम्पन्न है, ज्ञानी है, तथापरमोपेक्षाभाव को प्राप्त है, वह शिवगति (मोक्ष) के मार्ग का नायक होता है ॥144॥