
बहिरब्भंतरगंथविमुक्को सुद्धोपओयसंजुत्तो ।
मूलुत्तरगुणपुण्णो सिवगदिपहणायगो होदि ॥145॥
बहिरभ्यन्तरग्रन्थविमुक्त: शुद्धोपयोगसंयुक्त: ।
मूलोत्तर-गुणपूर्ण: शिवगतिपथनायको भवति ॥
अन्वयार्थ : जो बाह्य व आभ्यन्तर परिग्रह से मुक्त है, शुद्धोपयोग वाला है, तथा मूल गुणों वउत्तर गुणों से परिपूर्ण है, वह शिवगति के मार्ग का नायक होता है ॥145॥