
जं जादिजरामरणं दुहदु विसाहिविसविणासयरं ।
सिवसुहलाहं सम्मं संभावदि सुणदि साहदे साहू ॥146॥
यत् जातिजरामरण-दु:खदुष्टविषाहिविषविनाशकरम् ।
शिवसुखलाभं (लम्भकं) सम्यक्त्वं सम्भावयति, श्रृणोति साधयति साधु: ॥
अन्वयार्थ : जो जन्म, बुढ़ापा मृत्यु एवं दु:ख रूपी दुष्ट सर्प के विष का नाश करनेवाला है, और मोक्ष-सुख का लाभ कराता है, उसी सम्यक्त्व की साधु भावना करता है,उसे ही सुनता है और उसी को साधता है ॥146॥