
किं बहुणा हो देविंदाहिंदणरिंदगणहरिंदेहिं ।
पुज्ज परमप्पा जे, तं जाण पहाण सम्मगुणं ॥147॥
किम्बहुना, अहो देवेन्द्र-अहीन्द्र-नरमन्द्र-गणधरमन्द्रै: ।
पूज्या: परमात्मान: ये, तत् जानीहि प्रधानं सम्यक्त्वगुणम् ॥
अन्वयार्थ : अहो! अधिक क्या कहें, जो परमात्मा देवेन्द्र, नागेन्द्र, नरमन्द्र औरगणधरमन्द्रों से पूजित हैं, उनमें सम्यक्त्वगुण की प्रधानता है । यह जानें ॥147॥