उवसम्मइ सम्मत्तं मिच्छत्तबलेण पेल्लदे तस्स ।
परिवट्टंति कसाया अवसप्पिणी कालदोसेण ॥148॥
उपशमकं सम्यक्त्वं मिथ्यात्वबलेन पीड्यते तस्य ।
प्रवर्तन्ते कषाया: अवसर्पिणी-कालदोषेण ॥
अन्वयार्थ : अवसर्पिणी काल के दोष से मिथ्यात्व की प्रबलता से उपशम सम्यक्त्वनष्ट हो जाता है, फिर कषाय पुन: उत्पन्न हो जाती हैं ॥148॥