गुण-वय-तव-सम-पडिमा-दाणं जलगालणं अणत्थमियं ।
दंसण-णाण-चरित्तं किरिया तेवण्ण सावया भणिदा ॥149॥
गुण-व्रत-तप:-साम्य-प्रतिमा-दानं जलगालनम् अनस्तमितम् ।
दर्शन-ज्ञान-चारित्रं क्रिया: त्रिपञ्चाशत् श्रावकीया: भणिता: ॥
अन्वयार्थ : (आठ मूल) गुण, (बारह) व्रत, (बारह) तप, समता भाव, (ग्यारह)प्रतिमाएँ, (चार) दान, जलगालन (पानी छानकर पीना), रात्रिभोजन त्याग, सम्यग्दर्शन,सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र । ये (कुल मिलाकर) तिरमपन क्रियाएँ श्रावकों की कही गई हैं ॥149॥