कालमणंतं जीवो मिच्छत्तसरूवेण पंचसंसारम ।
हिंडदि ण लहदि सम्मं संसारब्भमणपारंभो ॥152॥
कालमनन्तं (यावत्) जीवो मिथ्यात्वस्वरूपेण पञ्चसंसारमषु ।
हिण्डते न लभते सम्यक्त्वं संसारभ्रमणप्रारम्भ: ॥
अन्वयार्थ : (यह जीव) मिथ्यात्व स्वरूप होने से अनन्त काल तक पञ्च परावर्तनरूप संसार में भ्रमण करता है । यह (जीव) सम्यक्त्व नहीं प्राप्त करता है, अत: उसकासंसार-भ्रमण होता रहता है ॥152॥