रयणत्तयमेव गणं, गच्छं गमणस्स मोक्खमग्गस्स ।
संघो गुणसंघादो समओ खलु णिम्मलो अप्पा ॥158॥
रत्नत्रयमेव गण:, गच्छ:, गमनं मोक्षमार्गे ।
संघो गुणसंघात: समय: खलु निर्मल आत्मा ॥
अन्वयार्थ : रत्नत्रय ही 'गण' है और मोक्षमार्ग में गमन ही 'गच्छ' है, गुणों कासमूह ही 'संघ' है, और निर्मल आत्मा ही 'समय' है ॥158॥