
मिहिरो महंधयारं मरुदो मेहं महावणं दाहो ।
वज्जे गिरि जहा विणसिज्ज्दि सम्मं तहा कम्मं ॥159॥
मिहिरो महान्धकारं मरुत् मेघं महावनं दाह: ।
वज्रो गिरिं यथा विनाशयति सम्यक्त्वं तथा कर्म ॥
अन्वयार्थ : सम्यग्दर्शन कर्म को उसी प्रकार नष्ट कर देता है, जिस प्रकार सूर्य अत्यन्तघने अन्धकार को, वायु मेघ को, अग्नि महावन को तथा वज्र पर्वत को नष्ट कर देता है ॥159॥