
धम्मज्झाणब्भासं करमदि तिविहेण भावसुद्धेण ।
परमप्पझाणचेट्ठो तेणेव खवेदि कम्माणि ॥163॥
धर्मध्यानाभ्यासं करोति त्रिविधया भावशुद्ध्या ।
परमात्म-ध्यानस्थित: तेनैव क्षपयति कर्माणि ॥
अन्वयार्थ : जो त्रिविध भाव-शुद्धि के साथ धर्मध्यानका अभ्यास करता है, और परमात्म-ध्यान में स्थित हो जाता है एवं उसी से कर्मों का क्षय कर देता है ॥163॥