ग्रन्थ :
श्रूयतां मद्यनिवृत्तिगुणस्योपाख्यानम्-अशेषविद्यावैशारद्यमदमत्तमनीषिमत्तालिकुलकेलिकमलनाभ्यां वलभ्यां पुरि खात्रचरित्रशीलः करवालः, कपाटोद्धाटनपटुवटुः, महानिद्रासंपादनकुण्लो धूर्तिलः, परगोपायितद्रविणदेविशारदः शारदः, खरेपटाममविलासः कृकिलास्ववेति पञ्च मलिम्हुँचाः प्रतिपापरस्परप्रीतिप्रपश्चाः स्वव्यबसायसाहसाभ्यामीश्वरशपिरार्धवासिनी भवानीमपि मुकुम्बहल्याश्रयधियं श्रियमपि कात्यायनीलोचनासजनमअनमपि हर्तुं समर्थाः, पश्वतोहराणामपि पश्यतोहराः, कृतान्तदूतानामपि कृतान्तदूताः, कदाचिदेकस्यां निशि बेलालोपं वर्षति देवे कालपटलकालकायप्रतिष्ठासु सकलासु काठासु विहितपुरसारापहाराः पुरवाहिरिकोपवने धनं विभजन्तस्तवेदं ममेदमिति विवदमानाः कन्दलमपहाय समानायितमैरेयाः पानगोष्ठीमनुतिष्ठन्तः पूर्याहितकलहकोपोन्मेषकलुधिषणाः यशयष्टि मुशामुष्टि च युद्धं विधाय सर्वेऽपि मनु रन्यत्र धूर्तिलात्। ___ सकिल यथादर्शनसम्भवं महामुनिविलोकनात्तस्मिन्नहन्येकं व्रतं गृहाति । तत्र च दिने तहे शनादासवत्रतमग्रहीत् । तदनु धूर्तिलः समानशीलेषु कश्यवश्यां विनाश लेश्यामात्मसमक्षमुपयुज्य विरज्याजवंजे वादसुखबीजादुत्पाटये च मनोजकुजजटाजालनिवेशमिव केशपाशं चिरत्राय" (?)पर हितजैत्राय समीहांचके! भवति चात्र श्लोकः मद्यवती धूर्तिल नामक चोर की कथा (अब मद्य त्याग के लाभ के सम्बन्ध में कथा सुनें) वलभी नगरी में पाँच चोर रहते थे । उनमें से करवाल नाम का चोर मकानों में सेंध लगाने में कुशल था। वटु दरवाजा खोलने में कुशल था। धूर्तिल महानिद्रा बुलाने में कुशल था। शारद छिपाये हुए धन का स्थान खोज निकालने में कुशल था। और कृकिलास ठग विद्या में निपुण था । पाँचों में परस्पर में बड़ी प्रीति थी। और अपने उद्यम और साहस से वे शिव के अर्धाङ्ग में निवास करने वाली पार्वती को, विष्णु के हृदय में बसने वाली लक्ष्मी को और दुर्गा की आँखों में लगे अंजन को भी चुराने में समर्थ थे। वे चोरों के भी चोर थे और यमराज के दूतों के लिए भी यमराज के दूत थे। एक बार रात में जब जोर से वर्षा हो रही थी और दिशाएँ कज्जल की तरह काली थीं, वे चोर चोरी करके नगर से बाहर एक उद्यान में धनका बटवारा करते थे। और यह मेरा है यह तेरा है कहकर परस्पर में झगड़ रहे थे। झगड़ा बन्द करके उन्होंने शराब बुलवायी और पीने लगे। झगड़े के कारण उनके मन में क्रोध तो समाया ही हुआ था, शराब पीकर वे परस्पर में मुक्कामुक्की और लटुं-लट्ठा करने लगे और धूर्तिल के सिवा सब मर गये। धूर्तिल के यह नियम था कि यदि उसे किसी दिन किसी, महामुनि के दर्शन होते थे तो उस दिन के लिए वह एक व्रत ले लेता था । उस दिन भी उसे महामुनि के दर्शन हुए थे और उसने शराब का व्रत ले लिया था। इसी से वह बच गया। उक्त घटना के बाद शराब के कारण अपने साथियों का विनाश हुआ देखकर धूर्तिल दुःखों के मूल इस संसार से विरक्त हो गया और कामदेव रूपी वृक्ष की जटाओं के समान बालों का लोंच करके परलोक में महित को जीतनेवाले रत्नत्रय की प्राप्ति का इच्छुक हो गया। उक्त कथा के सम्बन्ध में एक श्लोक है, जिसका भाव इस प्रकार है -- एकस्मिन्बासरे मद्यनिवृत्तधूर्तिलः किल ।
"जब कि मद्यपान के दोष से अन्य साथी चोर मर गये तब एक दिन के लिए शराब का त्याग कर देने से धूर्तिल चोर बच गया" ॥278॥एतदोषारसहायेषु मृतेष्वापदनापदम् ॥278॥ इत्युपासकाध्ययने मद्यनिवृत्तिगुणनिदानो नाम त्रयोविंशतितमः कल्पः । इस प्रकार उपासकाध्ययनमें मद्यत्याग के गुणों को बतलाने वाला तेईसवाँ कल्प समाप्त हुआ । |