बोधिनी :
आदिमलब्धिभवो य:भावो जीवस्य सातप्रभृतीनात्;;शस्तानां प्रकृतीनां बंधन योग्यो विशुद्धिलब्धि: स: ॥५॥
क्षयोपशम लब्धि होने के बाद धर्मानुराग रूप परिणामों से साता-वेदनीय आदि प्रशस्त प्रकृतियों के बंध योग्य परिणाम होते है वह विशुद्धि लब्धि है ।विशेष -- पाप कर्मों के प्रति समय अनन्तगुणित हीन क्रम से उदीरित अनुभाग-स्पर्धकों से उत्पन्न हुआ साता आदि शुभ-कर्मों के बंध का निमित्त भूत और असातादि अशुभ-कर्मों के बंध का विरोधी जीव का परिणाम विशुद्ध है, उसकी प्राप्ति का नाम विशुद्धि-लब्धि है । |