बोधिनी :
सम्यक्त्वाभिमुखमिथ्यः विशुद्धिवृद्धिभिः वर्धमानः खलु;;अंतःकोकोटि सप्तानां बंधन करोति ॥९॥
प्रथमोपशम सम्यक्त्व के अभिमुख सभी मिथ्यदृष्टि जीव एक कोड़ा कोडी सागर के अंतर्गत ही स्थिति बंध रहता है इससे अधिक स्थितिबंध नही करते (ध.पु.६ पृ.१३५) । वह जीव बंधने वाली इन ७ कर्म प्रकृतियों का स्थितिबंध अंत:कोड़ा कोडी सागर प्रमाण ही करते है क्योकि वह उनके यथायोग्य विशुद्धपरिणामों से युक्त होता है ।(ज. ध,पु.१२ पृ २१३) विशेष -- प्रथमोपशम सम्यक्त्व के अभिमुख मिथ्यादृष्टि जीव, प्रयोग्यलब्धि के प्रथम समय से, प्रति समय परिणामों में वर्धमानगत अनंतगुणी विशुद्धि की वृद्धि करते हुए आयु के अतिरिक्त सप्त कर्मों का स्थिति बंध; अंत: कोड़ाकोडी सागर प्रमाण करता है । |