बोधिनी :
नरतिश्र्चामोघ: भवनत्रि सौधर्मयुगलके द्वितीयं;;तृतीयं अष्टादशमं त्रयो विंशत्यादिदशपदं चरमम्;;तानि चैव चतुर्दशपदानि अष्टादशेन हीनानि भवन्ति;;रत्नादिपृथिवीषट्के सनत्कुमारादिदशकल्पे ॥१७॥;;तानि त्रयोदश द्वितीयेन च त्रियोविंशतिकेन चापि परिहीनानि;;आनतकल्पाद युपरिम ग्रैवेयकान्त मित्य पसरणा:
१ - प्रथमोपशम सम्यक्त्व के अभिमुख मनुष्य और तिर्यन्चों के पूर्वाक्त ३४ बन्धापसरण होते है जिनमे ४६ प्रकृतियों की बन्ध-व्युच्छित्ति है ।२ - प्रथमोपशम सम्यक्त्व के अभिमुख देव तथा सातवे नरक के अतिरिक्त छः पृथिवींयों के नारकी जीवों के बंधने वाली प्रकृतिया - असातावेदनीय, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, अरति, शोक, नरकगति, देवगति, ऐकेन्द्रिय से चतुरेन्द्रिय जाति (४) वैक्रयिक-शरीर, आहारक शरीर, समचतुरसंस्थान के अतिरिक्त ५ संस्थान, वैक्रयिक शरीर अंगोपांग, आहार शरीर अंगोपांग, वज्रऋषभनाराचसंहनन के अतिरिक्त ५ संहनन, नरकगति प्रायोग्यानुपूर्वी, तिर्यग्गति प्रायोग्यानुपूर्वी, देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अप्रशस्त विहायोगगति, आतप, उद्योत, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण शरीर, अस्थिर, अशुभ, दुर्भाग, दुःस्वर, अनादेय, अयश:, कीर्ति, नीच-गोत्र और तीर्थंकर । इनमे से अपनी अपनी बंध-अयोग्य प्रकृतियों को घटाकर बन्धापसरणों द्वारा बन्धव्युच्छेद हो जाता है । भवनत्रिक देवों व् सौधर्मेन्द्र -- ऐशानस्वर्ग केदेवो में तिर्यगायु, मनुष्ययु, एकेन्द्रिय, आतप, तिर्यंच चगति, तिर्यंच गत्यानुपूर्वी, उद्योत, नीच गोत्र, अप्रशस्तविहयोगगति, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, हुंडकसंस्थान, कुब्जकसंस्थान, अर्द्ध नाराचसंहन, असंप्राप्तसृपाटिकासंहनन, नपुंसक वेद,स्त्री वेद, स्वाति संस्थान, वामन संस्थान, कीलितसंहनन , , न्योगरोधसंस्थान, वज्र नाराच संहनन, अस्थिर अशुभ, अयश:कीर्ति, अरति, शोक, असतवेदनीय, इन ३१ प्रकृतियों के बंध व्युच्च्छित्ति सम्यक्त्व के अभिमुख जीव की होती है । प्रथमादि ६ नरक और तीसरे स्वर्ग से १२ वे स्वर्ग पर्यन्त जीवों में उक्त ३१ प्रकृतियों में से बंध के अयोग्य एकेन्द्रिय, स्थावर और आतप को कम कर, २८ प्रकृतियों की बंध व्युच्छित्ति सम्यक्त्व के अभिमुख जीव की होती है । १३वे से १६ वे स्वर्ग तथा ९ वें ग्रैवियेक पर्यन्त देवों में उक्त २८ प्रकृतियों में से बंध के अयोग्य तिर्यगायु, तिर्यंच गति, तिर्यंचगत्यानुपूर्वी और उद्योत, ४ प्रकृति कम करने पर २४ प्रकृतियों की बन्धव्युच्छित्ति अभिमुख जाए के होती है । |