देव-तस वण्ण-अगरुचउक्कं समचउरतेजकम्मइं
सग्गमणं पंचिंदी थिरादिछण्णिमिणमडवीसं ॥21॥
अन्वयार्थ : [देव] देव [चउक्कं] चतुष्क , [तस] त्रस [चउक्कं] चतुष्क, [वण्ण] वर्ण [चउक्कं] चतुष्क, [अगरु] अगुरुलघु [चउक्कं] चतुष्क , [समचउर] समचतुरस्र-संस्थान, [तेज] तेजस, [कम्मइं] कार्माण-१, [सग्गमणं] शुभ विहायोगति, [पंचिंदी] पंचेन्द्रिय, [थिरादिछ] स्थिरादि छः-६ और [ण्णिमिण] निर्माण, अप्रमत्तगुण स्थान संबंधी [मडवीसं] २८ कर्म प्रकृतियाँ अप्रमत्त गुणस्थान संबंधी बंधने वाली है ।
बोधिनी
बोधिनी : देव त्सवर्णागुरु चतुष्कं समचतुरस्रतेज: कार्माणकम्;;सद्गमनं पंचेंद्रिय स्थिरादिषण्णिर्माणमष्टाविंशम् ॥
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