सिद्धांत-बोधिनी
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तीनों करणों का काल अल्पबहुत्व सहित
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अंतोमुहुत्तकाला तिण्णिवि करणा हवंति पत्तेयं
उवरीदो गुणियकमा कमेण संखेज्जरूवेण ॥34॥
अन्वयार्थ :
[तिण्णिवि]
तीनों
[करणा]
करणों में
[पत्तेयं]
प्रत्येक का
[अंतोमुहुत्तकाला]
अन्तर्मुर्हूर्त प्रमाणकाल
[हवंति]
होता है । किन्तु
[उवरीदो]
ऊपर से नीचे करणों का काल
[संखेज्जरूवेण]
संख्यात गुणा
[गुणियकमा कमेण]
क्रम लिए हुए है ।
बोधिनी
बोधिनी :
अंतमुर्हूर्तकालानि त्रीण्यपि करणानि भवंति प्रत्येकं;;उपरित: गुणितक्रमाणि क्रमेण संख्यात रूपेण ॥३४॥
इनमे अनिवृत्तिकरण का काल स्तोक है,अपूर्वकरण का उससे संख्यात गुना और उससे संखयातगुणा अध:प्रवृत्तकरण का काल है --
(क.पा.सु.पृ.६२१)