+ प्रथम करण को अध:करण कहने का कारण -
जम्हा हेट्ठीमभावा उवरिम भावेहिं सरिसगा होंति
तम्हा पढमं करणं अधापवत्तोति णिद्दिट्ठं ॥35॥
अन्वयार्थ : [जम्हा] क्योंकि [हेट्ठीमभावा] अधस्तन अर्थात नीचे के भाव [उवरिम] उपरितन [भावेहिं] भावों के [सरिसगा] सदृश [होंति] होते है [तम्हा] इसलिए [पढमं] प्रथम [करणं] करण को [अधापवत्तोत] अध:प्रवृत्तकरण [णिद्दिट्ठं] कहा गया है ।

  बोधिनी 

बोधिनी :


यस्मादघस्तनभावा उपरितनभावै:सदृशा भवन्ति;;तस्मात् प्रथमं करणं अध:प्रवृत्तमिति निर्दिष्टम्
१-प्रथम करण में विध्यमान जीव के करण परिणाम अर्थात उपरितन समय के परिणाम, पूर्व समय के परिणामों के समान प्रवृत्त होते है, इसलिए वह अध:प्रवृत्तकरण है । इस कारण उपरिम समय के परिणाम नीचे के समयों में भी पाये जाते है (ज.ध.पु.१२ पृ २३३) क्योंकि उपरितन समयवर्ती परिणाम अध: अर्थात अधस्तन समयवर्ती परिणामों में समानता को प्राप्त होते है, अत: अध:प्रवृत्त, संज्ञा सार्थक है (ध पु.६ पृ २१७)

२-प्रथम समय संबंधी प्रथम पुंज के परिणाम और अंतिम समय संबंधी अंतिम पुंज के परिणाम, किन्ही परिणामों के सदृश नहीं होते । अन्य जितने परिणाम है वे यथायोग्य सदृश भी होते है और विसदृश भी होते हैं । यह कथन नाना जीवों की अपेक्षा है ।