आदिमकरणद्धाए पढमट्ठिदिबंधदो दु चरिमम्हि
संखेज्जगुणविहीणो ट्ठिदिबंधो होइ णियमेण ॥40॥
अन्वयार्थ : [आदिमकरणद्धाए] अध:प्रवृत्तकरण काल के आदि में जो [पढम] प्रथम [ट्ठिदिबंधदो] स्थिति-बंध होता है, [दु] तथा उससे [चरिमम्हि] अंत में [म्हि] होना वाला [ट्ठिदिबंधो] स्थिति बंध [णियमेण] नियम से [संखेज्जगुणविहीणो] संख्यातगुणाहीन होता है ।

  बोधिनी 

बोधिनी :


आदिमकरणद्धायां प्रथमस्थितिबंधतस्तु चरमे;;संख्यातगुणविहीन:स्थितिबंधो भवति नियमेन ॥
अध:प्रवृत्त करण के प्रथम समय में स्थितिबंध अंत:कोटि सागरोपम होता है । वह चरम समय में अंख्यातगुणा हीन नियम से होता है ।