ताए अधा पवत्तद्धाय संखेज्जभागमेत्तं तु
अणुकट्टीए अद्धा णिव्वग्गणकंडयं तं तु ॥43॥
अन्वयार्थ : [ताए] उस [अधा] अध: [पवत्तद्धाय] प्रवृत्तकरण के काल का [संखेज्जभागमेत्तं] संख्यात्वा भाग प्रमाण [अणुकट्टीए] अनुकृष्ट रचना का [अद्धा] आयाम [तु] है, [तंतु]जितने समय का वह [अद्धा] आयाम है उतने समय का एक [णिव्वग्गणकंडयं] निर्वर्गणाकाण्डक होता है ।
बोधिनी
बोधिनी : तस्या अध:प्रवृत्ताद्धाया:संख्येयभाग मात्रं तु;;अनुकृष्टया अद्धा निर्वर्गंणकांडकं तत्तु ॥४३॥
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