जीवतत्त्वप्रदीपिका :
आगे किस मार्गणा में कौनसी प्ररूपणा गर्भित है ? वह तीन गाथाओं द्वारा कहते हैं । इन्द्रियमार्गणा में, पुनश्च कायमार्गणा में जीवसमास और पर्याप्ति और श्वासोच्छ्वास, भाषा, मनबल प्राण ये अंतर्भूत हैं । कैसे है ? वह कहते हैं -- जीवसमास और पर्याप्ति इनका इन्द्रिय तथा काय सहित तादात्म्य से किया हुआ एकत्व होता है । जीवसमास और पर्याप्ति ये इन्द्रिय-कायरूप ही हैं । पुनश्च सामान्य-विशेष द्वारा किया हुआ एकत्व होता है । जीवसमास, पर्याप्ति और इन्द्रिय, काय में कहीं सामान्य का ग्रहण है, कहीं विशेष का ग्रहण है । पुनश्च पर्याप्तियों का धर्म-धर्मी द्वारा किया हुआ एकत्व होता है । पर्याप्ति धर्म है, इन्द्रिय-काय धर्मी हैं । इसलिये जीवसमास और पर्याप्ति इन्द्रिय-कायमार्गणा में गर्भित जानने । पुनश्च उच्छ्वास, वचनबल, मनबल प्राणों का अपने कारणभूत उच्छ्वास, भाषा, मनःपर्याप्ति जहां जहां अंतर्भूत हुये, उसमें अंतर्भूतपना न्याय्य ही है । इसलिये ये भी वहां ही इन्द्रिय-कायमार्गणा में गर्भित हुये । पुनश्च योगमार्गणा में कायबलप्राण गर्भित है, चूंकि जीव के प्रदेशों का चंचल होनेरूप लक्षण का धारी काययोगरूप जो कार्य, उसमें उस काय का बलरूप लक्षण का धारी कायबल प्राणस्वरूप जो कारण, उसके अपने स्वरूप का सामान्य-विशेष द्वारा किया हुआ एकत्व-विशेष का सद्भाव है, इसलिये कार्य-कारण द्वारा किया हुआ एकत्व होता है । पुनश्च ज्ञानमार्गणा में इन्द्रियप्राण गर्भित है, क्योंकि इन्द्रियरूप मति-श्रुतावरण के क्षयोपशम से प्रकट जो लब्धिरूप इन्द्रिय, उनके ज्ञान सहित तादात्म्य से किया हुआ एकत्व का सद्भाव है । पुनश्च गतिमार्गणा में आयुप्राण गर्भित है । क्योंकि गति और आयु के परस्पर अजहद्वृत्ति है । गति आयु बिना नहीं, आयु गति बिना नहीं, सो इस लक्षण से एकत्व होता है । |