एयंत बुद्धदरसी, विवरीओ बह्म तावसो विणओ
इंदो वि य संसइयो, मक्कडियो चेव अण्णाणी ॥16॥
एकांतो बुद्धदर्शी विपरीतो ब्रह्म तापसो विनयः ।
इंद्रोऽपि च संशयितो मस्करी चैवाज्ञानी ॥१६॥
अन्वयार्थ : बौद्धादि मतवाले एकान्त मिथ्यादृष्टि हैं । याज्ञिक ब्राह्मणादि विपरीत मिथ्यादृष्टि हैं । तापसादि विनय मिथ्यादृष्टि हैं । इन्द्र नामक श्वेताम्बर गुरु प्रभृति संशय-मिथ्यादृष्टि हैं और मस्करी (मुसलमान) सन्यासी आदिक अज्ञान-मिथ्यादृष्टि हैं ।

  जीवतत्त्वप्रदीपिका 

जीवतत्त्वप्रदीपिका :

आगे इन पांच के उदाहरण कहते हैं --

ये उपलक्षणपने से कहे हैं । एक का नाम लेने पर अन्य का भी ग्रहण करना इसलिये ऐसे कहना -
  1. बुद्धदर्शी जो बौद्धमती उसको आदि रखकर एकांत मिथ्यादृष्टि हैं ।
  2. पुनश्च यज्ञकर्ता ब्राह्मण आदि विपरीत मिथ्यादृष्टि हैं ।
  3. पुनश्च तापसी आदि विनय मिथ्यादृष्टि हैं ।
  4. पुनश्च इन्द्र नामक जो श्वेतांबरों का गुरु उसको आदि रखकर संशय मिथ्यादृष्टि हैं ।
  5. पुनश्च मस्करी (मुसलमान) सन्यासी को आदि रखकर अज्ञान मिथ्यादृष्टि हैं ।
वर्तमान काल की अपेक्षा से ये भरतक्षेत्र में विद्यमान बौद्धमती आदि उदाहरण कहे हैं ।