जीवतत्त्वप्रदीपिका :
आगे सासादन गुणस्थान का स्वरूप दो सूत्रों द्वारा कहते हैं - प्रथमोपशम सम्यक्त्व के काल में जघन्य एक समय, उत्कृष्ट छह आवली अवशेष रहनेपर, अनंतानुबंधी चार कषायों में से अन्यतम किसी एक का उदय होनेपर, नष्ट किया है सम्यक्त्व जिसने ऐसा होता है, उसे सासादन कहते हैं । पुनश्च वा शब्द से द्वितीयोपशम सम्यक्त्व के काल में भी सासादन गुणस्थान की प्राप्ति होती है - ऐसा (गुणधराचार्यकृत) कषायप्राभृत नामक यतिवृषभाचार्यकृत (चूर्णिसूत्र) जयधवल ग्रंथ का अभिप्राय है । जो मिथ्यात्व से चतुर्थादि गुणस्थानों में उपशमसम्यक्त्व होता है, वह प्रथमोपशम सम्यक्त्व है । पुनश्च उपशमश्रेणी चढ़ते समय क्षायोपशमिक सम्यक्त्व से जो उपशम सम्यक्त्व होता है, वह द्वितीयोपशम सम्यक्त्व जानना । |