जीवतत्त्वप्रदीपिका :
जो सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव है, वह सकलसंयम वा देशसंयम को ग्रहण नहीं करता, क्योंकि उनके ग्रहण योग्य जो करणरूप परिणाम, उनका वहां मिश्र गुणस्थान में होना असंभव है । पुनश्च उसीप्रकार ही वह सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव चारों गति संबंधी आयु को नहीं बांधता है । पुनश्च मरणकाल में नियम से सम्यग्मिथ्यात्वरूप परिणाम को छोड़कर असंयत सम्यग्दृष्टिपने को अथवा मिथ्यादृष्टिपने को नियम से प्राप्त होकर, पश्चात् मरता है । भावार्थ –- मिश्र गुणस्थान से पंचमादि गुणस्थान में चढ़ना नहीं है । पुनश्च वहां आयुबंध तथा मरण नहीं होता । |