सो संजमं ण गिण्हदि, देसजमं वा ण बंधदे आउं
सम्मं वा मिच्छं वा, पडिवज्जिय मरदि णियमेण ॥23॥
स संयमं न गृह्णाति देशयमं वा न बध्नाति आयुः ।
सम्यक्त्वं वा मिथ्यात्वं वा प्रतिपद्य म्रियते नियमेन ॥२३॥
अन्वयार्थ : तृतीय गुणस्थान-वर्ती जीव सकल संयम या देशसंयम को ग्रहण नहीं करता और न इस गुणस्थान में आयु-कर्म का बंध ही होता है तथा इस गुणस्थान-वाला जीव यदि मरण करता है तो नियम से सम्यक्त्व या मिथ्यात्व-रूप परिणामों को प्राप्त करके ही मरण करता है ।

  जीवतत्त्वप्रदीपिका 

जीवतत्त्वप्रदीपिका :

जो सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव है, वह सकलसंयम वा देशसंयम को ग्रहण नहीं करता, क्योंकि उनके ग्रहण योग्य जो करणरूप परिणाम, उनका वहां मिश्र गुणस्थान में होना असंभव है । पुनश्च उसीप्रकार ही वह सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव चारों गति संबंधी आयु को नहीं बांधता है । पुनश्च मरणकाल में नियम से सम्यग्मिथ्यात्वरूप परिणाम को छोड़कर असंयत सम्यग्दृष्टिपने को अथवा मिथ्यादृष्टिपने को नियम से प्राप्त होकर, पश्चात् मरता है ।

भावार्थ –- मिश्र गुणस्थान से पंचमादि गुणस्थान में चढ़ना नहीं है । पुनश्च वहां आयुबंध तथा मरण नहीं होता ।