सम्मत्त-मिच्छपरिणामेसु जहिं आउगं पुरा बद्धं
तहिं मरणं मरणंतसमुग्घादो वि य ण मिस्सम्मि ॥24॥
सम्यक्त्वमिथ्यात्वपरिणामेषु यत्रायुष्कं पुरा बद्धम् ।
तत्र मरणं मरणांतसमुद्घातोऽपि च न मिश्रे ॥२४॥
अन्वयार्थ : तृतीय गुणस्थानवर्ती जीव ने तृतीय गुणस्थान को प्राप्त करने से पहले सम्यक्त्व या मिथ्यात्व-रूप के परिणामों में से जिस जाति के परिणाम काल में आयु-कर्म का बंध किया हो उस ही तरह के परिणामों के होने पर उसका मरण होता है, किन्तु मिश्र गुणस्थान में मरण नहीं होता और न इस गुणस्थान में मारणान्तिक समुद्घात ही होता है ।

  जीवतत्त्वप्रदीपिका 

जीवतत्त्वप्रदीपिका :

सम्यक्त्वपरिणाम और मिथ्यात्वपरिणाम इन दोनों में से जिस परिणाम में पुरा अर्थात् सम्यग्मिथ्यादृष्टिपने को प्राप्त होने से पहले, परभव की आयु बांधी होगी, उस सम्यक्त्वरूप वा मिथ्यात्वरूप परिणाम को प्राप्त होकर ही जीव का मरण होता है, ऐसा नियम कहते हैं । पुनश्च अन्य कई आचार्य के अभिप्राय से यह नियम नहीं है । वही कहते हैं - सम्यक्त्व-परिणाम में वर्तमान कोई जीव यथायोग्य परभव की आयु को बांधकर पुनश्च सम्यग्मिथ्यादृष्टि होकर पश्चात् सम्यक्त्व को या मिथ्यात्व को प्राप्त होकर मरता है । पुनश्च कोई जीव मिथ्यात्व परिणाम में वर्तान, वह यथायोग्य परभव की आयु बांधकर, पुनश्च सम्यग्मिथ्यादृष्टि होकर पश्चात् सम्यक्त्व या मिथ्यात्व को प्राप्त होकर मरता है । पुनश्च उसीप्रकार मारणांतिक समुद्घात भी मिश्र-गुणस्थान में नहीं होता ।