जीवतत्त्वप्रदीपिका :
आगे उन प्रमादों के नाम, संख्या दिखाने के लिये सूत्र कहते हैं - संयमविरुद्ध कथा, उसे विकथा कहते हैं । तथा कषंति अर्थात् संयमगुण का घात करता है, उसे कषाय कहते हैं । तथा संयमविरोधी इंद्रियों का विषयप्रवृत्तिरूप व्यापार, उसे इन्द्रिय कहते हैं । तथा स्त्यानगृद्धि आदि तीन प्रकृतियों के उदय से वा निद्रा, प्रचला के तीव्र उदय से प्रकट हुयी जो जीव के अपने दृश्य पदार्थों के सामान्यमात्र ग्रहण को रोकनेवाली जड़रूप अवस्था, वह निद्रा है । तथा बाह्य पदार्थों में ममत्वरूप भाव, वह प्रणय अर्थात् स्नेह है । इस क्रम से विकथा चार, कषाय चार, इन्द्रिय पांच, निद्रा एक, स्नेह एक इसतरह सर्व मिलाकर प्रमाद पंद्रह होते हैं । यहां सूत्र में पहले चकार कहा, वह ये सर्व ही प्रमाद हैं, ऐसा साधारण भाव जानने के लिये कहा है । पुनश्च दूसरा तथा शब्द कहा, वह परस्पर समुदाय करने के लिये कहा है । |