
णिद्दापयले नट्ठे सदि आऊ उवसमंति उवसमया
खवयं ढुक्के खवया, णियमेण खवंति मोहं तु ॥55॥
अन्वयार्थ : जिनके निद्रा और प्रचला की बंधव्युच्छित्ति हो चुकी है तथा जिनका आयुकर्म अभी विद्यमान है, ऐसे उपशम-श्रेणी का आरोहण करने वाले जीव शेष मोहनीय का उपशमन करते हैं और जो क्षपक-श्रेणी का आरोहण करने वाले हैं, वे नियम से मोहनीय का क्षपण करते हैं ।
जीवतत्त्वप्रदीपिका