
धुदकोसुंभयवत्थं, होहि जहा सुहमरायसंजुत्तं
एवं सुहमकसाओ, सुहमसरागोत्ति णादव्वो ॥58॥
अन्वयार्थ : जिस प्रकार धुले हुए कौसुंभी वस्त्र में लालिमा-सुर्खी सूक्ष्म रह जाती है, उसी प्रकार जो जीव अत्यन्त सूक्ष्म राग-लोभ कषाय से युक्त है उसको सूक्ष्म-साम्पराय नामक दशम गुणस्थानवर्ती कहते हैं ।
जीवतत्त्वप्रदीपिका