
पुव्वापुव्वप्फड्ढय, बादरसुहमगयकिट्टि अणुभागा
हीणकमाणंतगुणेणवरादु वरं च हेट्ठस्स ॥59॥
अन्वयार्थ : पूर्वस्पर्धक से अपूर्वस्पर्धक के और अपूर्वस्पर्धक से बादरकृष्टि के तथा बादर-कृष्टि से सूक्ष्म-कृष्टि के अनुभाग क्रम से अनंतगुणे-अनंतगुणे हीन हैं। और ऊपर के जघन्य से नीचे का उत्कृष्ट और अपने-अपने उत्कृष्ट से अपना-अपना जघन्य अनंतगुणा-अनंतगुणा हीन है ।
जीवतत्त्वप्रदीपिका