
कदकफलजुदजलं वा, सरए सरवाणियं व णिम्मलयं
सयलोवसंतमोहो, उवसंतकसायओ होदि ॥61॥
अन्वयार्थ : निर्मली फल से युक्त जल की तरह, अथवा शरद ऋतु में ऊपर से स्वच्छ हो जाने वाले सरोवर के जल की तरह, सम्पूर्ण मोहनीय-कर्म के उपशम से उत्पन्न होने वाले निर्मल परिणामों को उपशान्त-कषाय नामक ग्यारहवाँ गुणस्थान कहते हैं ।
जीवतत्त्वप्रदीपिका