अज्जवमलेच्छमणुए, तिदु भोगकुभोगभूमिजे दो दो।
सुरणिरये दो दो इदि, जीवसमासा हु अडणउदी॥80॥
अन्वयार्थ : आर्यखण्ड में पर्याप्त, निर्वृत्त्यपर्याप्त, लब्ध्यपर्याप्त, तीनों ही प्रकार के मनुष्य होते हैं। म्लेच्छखण्ड में लब्ध्यपर्याप्त को छोड़कर दो प्रकार के ही मनुष्य होते हैं। इसीप्रकार भोगभूमि, कुभोगभूमि, देव, नारकियों में भी दो-दो ही भेद होते हैं। इसलिये सब मिलाकर जीवसमास के 98 भेद हुए ॥80॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका