
संखावत्तयजोणी, कुम्मुण्णयवंसपत्तजोणी य।
तत्थ य संखावत्ते, णियमा दु विवज्जदे गब्भो॥81॥
अन्वयार्थ : शंखावर्तयोनि, कूर्मोन्नतयोनि, वंशपत्रयोनि इसतरह स्त्री-शरीर में संभवित आकाररूप योनि तीन प्रकार की हैं। योनि अर्थात् मिश्ररूप होकर औदारिकादि नोकर्मवर्गणारूप पुद्गलों से सहित बंधता है जीव जिसमें, वह योनि है। जीव का उपजने का स्थान वह योनि है। वहाँ तीन प्रकार की योनियों में शंखावर्तयोनि में तो गर्भ नियम से विवर्जित है, गर्भ रहता ही नहीं है अथवा कदाचित् रहे तो नष्ट हो जाता है ॥81॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका