जम्मं खलु सम्मुच्छण, गब्भुववादा दु होदि तज्जोणी।
सच्चि त्तसीदसंउडसेदर मिस्सा य पत्तेयं॥83॥
अन्वयार्थ : जन्म तीन प्रकार का होता है, सम्मूर्छन, गर्भ और उपपाद। तथा सचित्त, शीत, संवृत, और इनसे उल्टी अचित्त, उष्ण, विवृत तथा तीनों की मिश्र, इस तरह तीनों ही जन्मों की आधारभूत नौ गुणयोनि हैं। इनमें से यथासम्भव प्रत्येक योनि को सम्मूर्छनादि जन्म के साथ लगा लेना चाहिये ॥83॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका