पोतजरायुजअंडज, जीवाणं गब्भ देवणिरयाणं।
उववाद सेसाणं, सम्मुच्छणयं तु णिद्दिट्ठं॥84॥
अन्वयार्थ : जिसके शरीर के ऊपर कोई आवरण नहीं है, जिसके अवयव सम्पूर्ण हैं और योनि से निकलते ही चलना आदि की सामर्थ्य से संयुक्त है वह जीव, पोत कहलाता है। प्राणी के शरीर के ऊपर जाल समान आवरण - मांस, लहू जिसमें विस्ताररूप पाया जाता है ऐसा जो जरायु, उसमें उत्पन्न जीव जरायुज कहलाता है। शुक्र, लहूमय तथा नख के समान कठिन आवरण सहित, गोल आकार का धारक वह अण्ड, उसमें उपजने वाला जीव अंडज कहलाता है। इन पोत, जरायुज, अंडज जीवों का गर्भरूप ही जन्म का भेद जानना। देव और नारकीयों का उपपाद ही जन्म का भेद हैं। पूर्वोक्त जीवों के बिना शेष समस्त जीवों का सम्मूर्छन ही जन्म का भेद सिद्धांत में कहा हैं ॥84॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका