
उववादे अच्चित्तं, गब्भे मिस्सं तु होदि सम्मुच्छे।
सच्चित्तं अच्चित्तं, मिस्सं च य होदि जोणि हु॥85॥
अन्वयार्थ : उपपाद जन्म की अचित्त ही योनि होती है। गर्भ जन्म की मिश्र योनि ही होती है। तथा सम्मूर्छन जन्म की सचित्त, अचित्त, मिश्र तीनों तरह को योनि होती है ॥85॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका