उववादे सीदुसणं, सेसे सीदुसणमिस्सयं होदि।
उववादेय्नखेसु य, संउड वियलेसु विउलं तु॥86॥
अन्वयार्थ : उपपाद जन्म में शीत और उष्ण दो प्रकार की योनि होती है। शेष गर्भ और सम्मूर्छनजन्मों में शीत, उष्ण, मिश्र तीनों ही योनि होती है। उपपाद जन्मवालों की तथा एकेन्द्रिय जीवों की योनि संवृत ही होती है। और विकलेन्द्रियों की विवृत ही होती है ॥86॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका