णिच्चिदरधादुसत्त य, तरुदस वियलिंदियेसु छच्चेव।
सुरणिरयतिरियचउरो, चोद्दस मणुए सदसहस्सा॥89॥
अन्वयार्थ : नित्यनिगोद, इतरनिगोद, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु इनमें से प्रत्येक की सात सात लाख, तरु अर्थात् प्रत्येक वनस्पति की दश लाख; द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय इनमें से प्रत्येक की दो दो लाख अर्थात् विकलेन्द्रिय की सब मिलाकर छह लाख; देव, नारकी, तिर्यंच पंचेन्द्रिय प्रत्येक की चार चार लाख, मनुष्य की चौदह लाख, सब मिलाकर 84 लाख योनि होती है ॥89॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका