
पुण्णजहण्णं तत्तो, वरं अपुण्णस्स पुण्णउक्कस्सं।
बीपुण्णजहण्णो त्ति असंखं संखं गुणं तत्तो॥100॥
अन्वयार्थ : श्रेणी के आगे के प्रथम कोठे में पर्याप्तकों की जघन्य और दूसरे कोठे में अपर्याप्तकों की उत्कृष्ट तथा तीसरे कोठे में पर्याप्तकों की उत्कृष्ट अवगाहना समझनी चाहिये। द्वीन्द्रिय पर्याप्त की जघन्य अवगाहना पर्यन्त असंख्यात का गुणाकार है और इसके आगे संख्यात का गुणाकार है ॥100॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका