
अवरद्धे अवरुवरिं, उह्ने तव्वह्निपरिसमत्ती हु।
रूवे तदुवरि उह्ने, होदि अवत्तव्वपढमपदं॥106॥
अन्वयार्थ : जघन्य का जितना प्रमाण है उसमें उसका आधा प्रमाण और मिला दिया जाय तब संख्यातभागवृद्धि का उत्कृष्ट स्थान होता है। इसके आगे भी एक प्रदेश की वृद्धि करने पर अवक्तव्यवृद्धि का प्रथम स्थान होता है ॥106॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका