हेट्ठा जेसिं जहण्णं, उवरिं उक्कस्सयं हवे जत्थ।
तत्थंतरगा सव्वे, तेसिं उग्गाहणविअप्पा॥112॥
अन्वयार्थ : जिन जीवों की प्रथम जघन्य अवगाहना का और अनंतर उत्कृष्ट अवगाहना का जहाँ जहाँ पर वर्णन किया गया है उनके मध्य में जितने भेद हैं उन सबका उसी के भेदों में अन्तर्भाव होता है ॥112॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका