जीवतत्त्वप्रदीपिका
छप्पंचाधियवीसं, बारसकुलकोडिसदसहस्साइं।
सुर-णेरइय-णराणं जहाकमं होंति णेयाणि॥116॥
अन्वयार्थ :
देव, नारकी तथा मनुष्य इनके कुल क्रम से छब्बीस लाख कोटि, पच्चीस लाख कोटि तथा बारह लाख कोटि हैं। जो कि भव्यजीवों के लिये ज्ञातव्य हैं ॥116॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका