पज्जत्तीपट्ठवणं जुगवं, तु कमेण होदि णिट्ठवणं।
अंतोमुहुत्तकालेणहियकमा तत्तियालावा॥120॥
अन्वयार्थ : सम्पूर्ण पर्याप्तियों का आरम्भ तो युगपत् होता है, किन्तु उनकी पूर्णता क्रम से होती है। इनका काल यद्यपि पूर्व-पूर्व की अपेक्षा उत्तरोत्तर का कुछ-कुछ अधिक है, तथापि सामान्य की अपेक्षा सबका अन्तर्मुहर्तमात्र ही काल है ॥120॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका