पुढविदगागणिमारुद, साहारणथूलसुहमपत्तेया।
एदेसु अपुण्णेसु य, एक्केक्के बार खं छक्कं॥125॥
अन्वयार्थ : स्थूल और सूक्ष्म दोनों ही प्रकार के जो पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और साधारण एवं प्रत्येक वनस्पति, इस प्रकार सम्पूर्ण ग्यारह प्रकार के लब्ध्यपर्याप्तकों में से प्रत्येक (हरएक) के 6012 निरतंर क्षुद्रभव होते हैं ॥125॥

  जीवतत्त्वप्रदीपिका