
पज्जत्तसरीरस्स य, पज्जत्तुदयस्स कायजोगस्स।
जोगिस्स अपुण्णत्तं, अपुण्णजोगो त्ति णिद्दिट्ठं॥126॥
अन्वयार्थ : जिस सयोग केवली का शरीर पूर्ण है और उसके पर्याप्ति नामकर्म का उदय भी मौजूद है तथा काययोग भी है, उसके अपर्याप्तता किस प्रकार हो सकती है ? तो इसका कारण योग का पूर्ण न होना ही बताया है ॥126॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका