
लद्धिअपुण्णं मिच्छे, तत्थ वि विदिये चउत्थ-छट्ठे य।
णिव्वत्तिअपज्जत्ती, तत्थ वि सेसेसु पज्जत्ती॥127॥
अन्वयार्थ : लब्ध्यपर्याप्तक मिथ्यात्व गुणस्थान में ही होते हैं। निर्वृत्त्यपर्याप्तक प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ और छट्ठे गुणस्थान में होते हैं। और पर्याप्तक उक्त चारों और शेष सभी गुणस्थानों में पाये जाती है ॥127॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका